बालू की सल्तनत : एक आदमी की हिम्मत, एक साम्राज्य को हिला सकती है

 

बालू की सल्तनत


भारत के हृदय में, जहाँ नदियाँ जीवन देती हैं, वहीं वे अब एक 'अदालत' और 'मृत्यु के स्थान' में बदल गई हैं। 'आधुनिक सभ्यता का आधार', रेत, 'नया सोना' बन चुकी है – एक ऐसा संसाधन जिसके लिए हत्या की जा सकती है। अर्जुन सिंह, एक युवा, आदर्शवादी पुलिस उप-निरीक्षक, एक ऐसे जिले में आता है जहाँ 'राजनीतिक भ्रष्टाचार' और 'क्रूर हिंसा' का बोलबाला है। उसकी आँखें तब खुलती हैं जब एक मासूम बच्चा, किसान रामू का बेटा कल्लू, 'रेत माफिया' द्वारा छोड़े गए एक 'गहरे, पानी से भरे गड्ढे' में डूब जाता है। इस 'दुखद घटना' से प्रेरित होकर, अर्जुन अपने आदर्शवाद को त्याग देता है और 'प्रतिशोध' के रास्ते पर चलता है।

उसका संघर्ष उसे एक 'अशुभ गठजोड़' के भीतर ले जाता है – एक 'विकेन्द्रीकृत पारिस्थितिकी तंत्र' जहाँ 'ठेकेदार, राजनेता, नौकरशाह और पुलिस' साझा 'लाभ और आपसी संरक्षण' के लिए मिले हुए हैं। इंस्पेक्टर विक्रम, एक भ्रष्ट लेकिन अंततः प्रायश्चित करने वाला पुलिस अधिकारी, 'हफ़्ता वसूली' के काले तंत्र को उजागर करता है। प्रिया, एक निडर खोजी पत्रकार, अपनी 'कलम' को एक 'शक्तिशाली हथियार' बनाती है, 'मंत्री सत्यपाल' जैसे 'उच्च-स्तरीय संरक्षकों' और रविंदर जैसे 'औद्योगिकपतियों' के काले कारनामों को बेनक़ाब करती है। यह कहानी 'मानवीय शोषण' और 'पर्यावरणीय विनाश' को उजागर करती है, जहाँ 'घड़ियाल' और 'डॉल्फ़िन' जैसे 'लुप्तप्राय प्रजातियाँ' भी माफिया की 'अदम्य लालच' का शिकार बनती हैं।

'डिजिटल युद्ध' से लेकर 'नदी के युद्ध' और 'शहरी घेराव' तक, अर्जुन और उसकी छोटी टीम - रामू, प्रिया, और कुछ वफ़ादार सहयोगी - 'अंतर्राष्ट्रीय समूह' के 'अदृश्य हाथों' को चुनौती देते हैं, जो 'वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं' को नियंत्रित करता है। 'न्याय का मार्ग' 'बलिदान' और 'विश्वासघात' से भरा है, लेकिन अर्जुन हार मानने से इनकार करता है। यह एक 'अधूरी जीत' की कहानी है, जहाँ माफिया के कुछ 'सिर' कट जाते हैं, लेकिन 'सत्ता का चक्र' और 'लालच का विचार' जारी रहता है। क्या अर्जुन का 'अदम्य प्रतिरोध' रेत के इस खूनी साम्राज्य को हमेशा के लिए ध्वस्त कर पाएगा, या यह 'रेत का रक्तपात... जारी' रहेगा?



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Chapter 1 : रेत का रक्तपात

अंधेरा अभी छँटा नहीं था। भोर की पहली किरणें क्षितिज पर फूटने को थीं। इस शांत सुबह में, वातावरण में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी। ग्रामीण इलाक़ा धीरे-धीरे जाग रहा था। हवा में पत्तों की सरसराहट थी। तभी अचानक, दूर से एक तेज़ आवाज़ सुनाई दी। एक भारी वाहन की। वह आवाज़ धीरे-धीरे पास आ रही थी। बालू से लदा एक विशालकाय टिपर। वह धूल के बड़े-बड़े बादलों के साथ सड़क पर चीखता हुआ चला आ रहा था। उसकी गति सामान्य से कहीं अधिक तेज़ थी। वह एक बेलगाम राक्षस की तरह बढ़ रहा था।

वाहन की तेज़ हेडलाइट्स ने क्षण भर के लिए सड़क के किनारे चल रहे एक व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लिया। वह व्यक्ति, जगबर अली था। जगबर अली एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता था। वह गाँव में सभी के लिए एक जाना-पहचाना चेहरा था। वह अपनी सुबह की सैर पर निकला था। शायद वह अपने दिन की शुरुआत करने जा रहा था। उसे कुछ सोचने या प्रतिक्रिया करने का अवसर भी नहीं मिला। टिपर ने उसे बेरहमी से रौंद दिया। एक भयानक चीख हवा में गूँजी। वह चीख क्षण भर में ही दम तोड़ गई। फिर सब शांत हो गया। सिर्फ़ वाहन के टायरों की चीख और इंजन की गड़गड़ाहट ही सुनाई देती रही, जो अब तेज़ी से दूर होती जा रही थी। सड़क पर सिर्फ़ धूल के गहरे बादल और... रक्त के ताज़े छींटे थे। एक भयानक दृश्य। यह एक दुर्घटना नहीं थी। यह एक सुनियोजित और क्रूर हत्या थी।

इसी शांत सुबह में, कुछ घंटों बाद, एक युवा पुलिस अधिकारी, अर्जुन सिंह, अपने नए स्थानांतरण के बाद जिले के मुख्यालय में पहुँचा। वह नई जगह पर था। उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। वह उत्साह और आदर्शवाद से भरा हुआ था। उसकी नई वर्दी पर अभी भी इस्तरी के निशान थे। उसे लगा था कि वह यहाँ कुछ बदल पाएगा। वह यहाँ न्याय स्थापित करने आया था। उसे सीधे स्थानीय थाने में रिपोर्ट करना था। थाना, एक पुरानी, जीर्ण-शीर्ण इमारत थी। उसकी दीवारें काली पड़ चुकी थीं। उसमें घुसते ही उसे घुटन महसूस हुई। हवा में धूल और उदासी की गंध थी। दीवारों पर जगह-जगह दरारें थीं। यह जगह किसी उम्मीद की नहीं, बल्कि पुरानी हार की गवाही दे रही थी।

थाने में प्रवेश करते ही, अर्जुन को एक अजीब सा माहौल महसूस हुआ। कर्मचारी सुस्त थे। उनकी आँखों में कोई चमक नहीं थी। वे बेरुखी से अपने काम कर रहे थे। जैसे वे सिर्फ़ समय काट रहे हों। उन्हें किसी बात की परवाह नहीं थी। "अर्जुन सिंह?" एक थकी हुई आवाज़ सुनाई दी। यह इंस्पेक्टर विक्रम था। विक्रम एक भारी-भरकम आदमी था। उसकी आँखें लाल थीं, जैसे उसे कई दिनों से नींद न आई हो। विक्रम की आवाज़ में एक अजीब सा स्वर था। उसमें निराशा भी थी। "आ गए? आओ, बैठो।" अर्जुन को बिठाया गया। विक्रम ने उसे देखा। उसकी नज़र में एक चेतावनी थी। "आप नए हैं, साहब," विक्रम ने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा स्वर था। उसमें अनुभवी व्यक्ति की थकावट थी। "यहाँ के नियम थोड़े अलग हैं। ज़्यादा अंदर मत जाइएगा। यह इलाक़ा खतरनाक है।" अर्जुन ने उस चेतावनी को अनसुना कर दिया। उसने दृढ़ निश्चय किया। उसे लगा कि वह सच को उजागर करेगा।

अर्जुन को तुरंत घटनास्थल पर भेजा गया। वह घटनास्थल पर पहुँचा। सड़क पर अब भी हल्के लाल धब्बे थे। वे सूख चुके थे। धूल जमी हुई थी। स्थानीय पुलिस पहले ही वहाँ मौजूद थी। उन्होंने इलाक़े को पीले रंग की टेप से घेर रखा था। वे मामले को सामान्य दुर्घटना बता रहे थे। "दुर्घटना हो गई साहब," एक कांस्टेबल ने कहा, उसकी आवाज़ में पूर्ण उदासीनता थी। उसे लगा कि यह सिर्फ़ एक रूटीन काम था। "बालू के ट्रक आते-जाते रहते हैं। कभी-कभी ऐसा हो जाता है। आप चिंता न करें। हमने रिपोर्ट बना ली है।" अर्जुन ने चारों ओर देखा। माहौल में अजीब सी खामोशी थी। भय पसरा हुआ था। लोग दूर खड़े थे। उनकी आँखों में भी डर था। उन्हें देखकर अर्जुन को महसूस हुआ कि कुछ तो ग़लत है। यह एक साधारण दुर्घटना नहीं थी।

उसने झुककर ज़मीन पर बिखरे कुछ टुकड़ों को देखा। एक टूटा हुआ, धातु का टुकड़ा। वह चमकीला था। वह किसी वाहन का हिस्सा लग रहा था। उस पर एक अजीब सा प्रतीक बना हुआ था। एक ऐसा प्रतीक जो उसे पहले कभी नहीं दिखा था। यह कोई सामान्य दुर्घटना नहीं थी। अर्जुन को यह तुरंत समझ आ गया। उसे कुछ अटपटा लगा। उसके मन में संदेह जागा। यह संदेह गहरा होता जा रहा था। उसने उस टुकड़े को उठाया। वह उसे अपनी जेब में रख लिया। वह जानता था कि यह एक सुराग था। एक छोटा सा, लेकिन महत्वपूर्ण सुराग।

अर्जुन ने घटनास्थल की पूरी जाँच की। उसने हर बारीक चीज़ पर ध्यान दिया। सड़क पर टायरों के निशान थे। वे बहुत गहरे थे। इससे पता चलता था कि वाहन बहुत तेज़ गति से भागा था। आसपास कोई ब्रेक के निशान नहीं थे। अगर यह दुर्घटना होती, तो ड्राइवर ब्रेक लगाता। यह सीधा टक्कर का मामला था। जैसे किसी ने जानबूझकर मारा हो। उसके दिमाग में सवाल उठने लगे। कौन था जगबर अली? उसे क्यों मारा गया? क्या यह रेत माफिया का काम था? उसके मन में कई विचार कौंध रहे थे।

थाने लौटकर, अर्जुन ने जगबर अली की मौत की और जानकारी जुटाने की कोशिश की। उसने पुराने मामलों की फ़ाइलें खंगालीं। उसे पता चला कि जगबर अली एक पर्यावरण कार्यकर्ता था। वह पिछले कुछ सालों से सक्रिय था। वह अक्सर अवैध रेत खनन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता था। उसने स्थानीय प्रशासन को कई शिकायतें भेजी थीं। उसने रैलियाँ भी निकाली थीं। हर बार, उसकी शिकायतें अनसुनी कर दी गईं। उसे कोई समर्थन नहीं मिला। उसे लगा कि सिस्टम ही उसे दबा रहा था।

अर्जुन ने देखा कि उसके सामने काग़ज़ों का ढेर था। वे सब पुराने मामले थे। उसने हर फ़ाइल को ध्यान से देखा। हर बार, उसे वही पैटर्न मिला। "दुर्घटनाएँ," "गायब हुए लोग," "अचानक बीमारियाँ।" लेकिन इन सब के पीछे एक ही अपराधी था। रेत माफिया। यह एक अदृश्य दुश्मन था। वह हर जगह था। उसकी जड़ें बहुत गहरी थीं। लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं था। हर जगह एक अदृश्य दीवार थी। वह जानता था कि यह सिस्टम का हिस्सा था। विक्रम ने उसे पहले ही चेतावनी दी थी।

रात हो चुकी थी। थाने में सन्नाटा पसरा था। अर्जुन अभी भी अपनी मेज पर था। उसके सामने काग़ज़ों का ढेर था। तभी उसने अपनी जेब से उस धातु के टुकड़े को निकाला। उस पर बना प्रतीक रहस्यमय था। उसने उसे ध्यान से देखा। यह किसी स्थानीय गैंग का प्रतीक हो सकता था। या शायद किसी खनन कंपनी का। अर्जुन ने अपनी नोटबुक निकाली। उसने प्रतीक को उसमें बना लिया। वह जानता था कि यह एक छोटी सी कड़ी थी, लेकिन यह उसे आगे ले जा सकती थी। वह इस कड़ी से पूरे जाल तक पहुँचना चाहता था।

अगले दिन, अर्जुन ने गाँव के आस-पास के क्षेत्रों का दौरा किया। वह चुपचाप लोगों से मिला। वह उनकी बातें सुनता रहा। वह उनके चेहरे पर डर पढ़ रहा था। लोग डर में जी रहे थे। हर कोई रेत माफिया के बारे में जानता था, लेकिन कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं था। "अगर हम बोलेंगे, तो हमारी जान को ख़तरा होगा," एक बूढ़ी औरत ने फुसफुसाकर कहा। उसकी आवाज़ काँप रही थी। "वे किसी को नहीं छोड़ते। चाहे वह कोई भी हो। वे उन्हें ठिकाने लगा देते हैं।" अर्जुन ने उनकी आँखों में डर देखा। उसे लगा कि वह एक ऐसे जाल में फँस गया है जहाँ हर तरफ़ ख़ामोशी है।

उसने देखा कि कैसे नदी किनारे अवैध खनन हो रहा था। दिन के उजाले में भी। दूर से जेसीबी मशीनों की आवाज़ें आती थीं। वे लगातार काम कर रही थीं। रात के समय, यह आवाज़ें और तेज़ हो जाती थीं। पूरा इलाक़ा खनन से छलनी हो रहा था। अर्जुन ने कुछ मजदूरों को भी देखा। वे बहुत कम मज़दूरी पर काम कर रहे थे। उनकी आँखों में थकान और लाचारी थी। वे रेत माफिया के लिए काम करने को मजबूर थे। उन्हें लगा कि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। अर्जुन को लगा कि यह सिर्फ़ खनन नहीं था, यह मानव शोषण भी था। यह एक भयानक सच्चाई थी। यह उसके अंदर एक आग भड़का रही थी।

अर्जुन ने ग्रामीणों से और जानकारी जुटाने की कोशिश की। वह जानना चाहता था कि यह माफिया कौन चलाता है। उसे कुछ नाम सुनाई दिए। छोटे-मोटे गुंडे। स्थानीय नेता। पुलिस में कुछ अधिकारी। लेकिन कोई बड़ा नाम नहीं था। सब कुछ धुंधला था। सब एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। जैसे एक विशाल, अदृश्य नेटवर्क हो। अर्जुन को पता था कि यह सिर्फ़ ऊपरी परत थी। असली खेल कहीं गहरे में चल रहा था।

उस दिन देर शाम, अर्जुन अपने किराए के कमरे में वापस आया। वह थका हुआ था। उसने कमरे में रखी अपनी पुरानी किताबों को देखा। वे क़ानून और न्याय के बारे में थीं। उसने सोचा कि उसने पुलिस की वर्दी क्यों चुनी थी। न्याय के लिए। लोगों की मदद के लिए। लेकिन यहाँ, न्याय एक मज़ाक लग रहा था। माफिया हर जगह था। सिस्टम उनके साथ था। वह एक ऐसे दुश्मन से लड़ रहा था जिसे देखा नहीं जा सकता था।

उसने अपने फ़ोन पर कुछ खोज की। रेत माफिया के बारे में। उसे कुछ पुरानी ख़बरें मिलीं। अधिकारियों पर हमले। पत्रकारों की हत्याएँ। कार्यकर्ताओं को धमकी। यह सब उसके सामने एक बड़ी तस्वीर बना रहा था। यह सिर्फ़ एक जिले की कहानी नहीं थी। यह पूरे देश की कहानी थी। एक गहरी और भयावह समस्या। यह माफिया देश के विकास को खा रहा था।

अर्जुन को लगा कि वह अब अकेले नहीं लड़ सकता। उसे मदद की ज़रूरत थी। लेकिन किससे? सिस्टम भ्रष्ट था। लोग डरे हुए थे। उसे कोई ऐसा चाहिए था जो हिम्मत रखता हो। जो सच्चाई के लिए लड़ सके। उसे पता था कि उसे यह लड़ाई लड़नी होगी। जगबर अली के लिए। उन सभी पीड़ितों के लिए। और अपने आदर्शों के लिए। उसे अब एक योजना बनानी थी।

उसने अपने फ़ोन पर उस धातु के टुकड़े की तस्वीर निकाली। उस पर बना प्रतीक। यह उसका पहला सुराग था। और वह इसे जाने नहीं देगा। उसने मन में ठान लिया। यह सिर्फ़ एक दुर्घटना नहीं थी। यह एक सुनियोजित हत्या थी। और वह इसे बेनक़ाब करेगा। चाहे उसे अपनी जान की बाज़ी ही क्यों न लगानी पड़े।

Chapter 2 : लालच का जाल

सुबह हो चुकी थी। सूरज की किरणें थाने के जर्जर कमरों में घुस रही थीं। हवा में एक अजीब सी बासी गंध थी। अर्जुन सिंह अपनी मेज पर बैठा था। उसके सामने काग़ज़ों का ढेर था। जगबर अली की "दुर्घटना" की फाइल सबसे ऊपर पड़ी थी। वह सिर्फ़ कुछ पन्नों की थी। उसमें बस एक सतही रिपोर्ट थी। कोई गहराई नहीं थी। कोई सच्ची जाँच नहीं। अर्जुन ने फ़ाइल को देखा। उसे लगा कि यह उसे चिढ़ा रही है। उसने मन ही मन तय कर लिया था कि वह इस मामले की तह तक जाएगा। उसने फ़ाइल को किनारे हटाया। उसकी आँखों में एक नई दृढ़ता थी।

"अर्जुन साहब, आप नए हैं," इंस्पेक्टर विक्रम ने कहा। वह मेज के कोने पर बैठा था। उसकी आँखों में गहरी उदासी थी। विक्रम ने एक चाय का कप उठाया। चाय का धुआँ हवा में घुल रहा था। "यहाँ सब ऐसे ही चलता है। आप ज़्यादा दिमाग मत लगाइए।" विक्रम की आवाज़ में एक अजीब सा स्वर था। उसमें उदासीनता भी थी। और एक छिपी हुई चेतावनी भी। अर्जुन ने उसे देखा। उसकी आँखों में कोई भाव नहीं था। "यह सिर्फ़ एक दुर्घटना थी," विक्रम ने ज़ोर देकर कहा। उसकी आवाज़ में ज़बरदस्ती का यकीन था। "बालू के ट्रक आते-जाते रहते हैं। कभी-कभी ऐसा हो जाता है। आप बस अपनी ड्यूटी करिए।" अर्जुन ने कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि विक्रम झूठ बोल रहा था। उसे लगा कि वह सच को दबाने की कोशिश कर रहा है।

अर्जुन ने फ़ाइल को वापस बंद कर दिया। उसे लगा कि वह किसी अदृश्य दीवार से टकरा रहा है। यह दीवार केवल काग़ज़ों की नहीं थी। यह भय की दीवार थी। वह जानता था कि इस सिस्टम से सीधे लड़ना मुश्किल होगा। उसने तय किया कि वह सीधे लोगों से बात करेगा। वह जगबर अली के गाँव की ओर निकल पड़ा। गाँव का रास्ता कच्चा था। धूल उड़ रही थी। पेड़ों पर पत्तियां नहीं थीं। सूखा हर जगह था। सड़क पर भी धूल ही धूल थी।

गाँव पहुँचकर, उसने कुछ ग्रामीणों से बात करने की कोशिश की। वे डरे हुए थे। उनकी आँखों में भय साफ़ दिख रहा था। उनकी आवाज़ें धीमी थीं। कोई भी खुलकर बात करने को तैयार नहीं था। उन्होंने अपनी चुप्पी बनाए रखी। जैसे किसी ने उनके होठों पर ताला लगा दिया हो। अर्जुन को लगा कि उन्हें किसी ने चुप करा दिया है। वह जानता था कि यह डर केवल शब्दों का नहीं था। यह जान का डर था। उसने महसूस किया कि यह माफिया लोगों के दिलों में उतर गया है।

गाँव के छोर पर, उसे एक वृद्ध किसान मिला। उसका नाम रामू था। रामू अपनी टूटी हुई झोपड़ी के बाहर बैठा था। उसकी झोपड़ी भी जर्जर थी। उसकी आँखों में गहरी उदासी थी। उसकी त्वचा झुर्रियों से भरी थी। जैसे उसने ज़िंदगी का बहुत दर्द देखा हो। अर्जुन ने उससे जगबर अली के बारे में पूछा। रामू पहले तो झिझका। उसकी आवाज़ काँप रही थी। उसके हाथ भी काँप रहे थे। "साहब, यहाँ कोई कुछ नहीं बोलता," उसने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी लाचारी थी। "रेत माफिया बहुत ताक़तवर है। वे सब कुछ नियंत्रित करते हैं। उनकी पहुँच बहुत ऊपर तक है।" अर्जुन ने उसे धीरज से सुना। उसने रामू को विश्वास दिलाने की कोशिश की। उसने उसे कहा कि वह उसकी मदद करने आया है। धीरे-धीरे, रामू का डर कम हुआ। उसने अर्जुन की ईमानदारी को महसूस किया।

रामू ने बताया कि कैसे रेत माफिया ने उसकी ज़मीन हड़प ली है। "हमारी खेती बर्बाद हो गई है, साहब," रामू ने कहा। उसकी आवाज़ में दर्द था। यह दर्द केवल उसकी अपनी नहीं थी। यह पूरे गाँव की दर्द थी। "नदी सूख गई है। पानी नीचे चला गया है। कुछ नहीं बचा। खेत बंजर हो गए हैं।" उसने अर्जुन को नदी के किनारे ले जाकर दिखाया। नदी पहले एक जीवनदायिनी धारा थी। अब वह सिर्फ़ एक पतली लकीर थी। रेत के बड़े-बड़े टीले हर जगह थे। नदी का प्रवाह बदल गया था। जगह-जगह गहरे गड्ढे थे। ये सब अवैध खनन के निशान थे। रामू ने बताया कि ये गड्ढे कितने खतरनाक हैं। "कई बच्चे इनमें गिरकर डूब गए हैं," उसने कहा। उसकी आँखें नम हो गईं। उसकी आवाज़ में एक गहरा शोक था। "कोई सुनने वाला नहीं है। प्रशासन भी उनकी तरफ़ है।"

रामू की बातों ने अर्जुन को हिला दिया। यह केवल अपराध नहीं था। यह एक समुदाय का विनाश था। उसने रामू से पूछा कि क्या वह उसे रात में खनन स्थल दिखा सकता है। रामू पहले तो डरा। "साहब, बहुत ख़तरनाक है," उसने कहा। "वे किसी को नहीं छोड़ते।" लेकिन अर्जुन के आग्रह पर, रामू मान गया। उसे लगा कि यह आखिरी उम्मीद थी।

उसी रात, अर्जुन ने छिपकर रेत खनन देखने का फैसला किया। वह जानता था कि यह ख़तरनाक था। लेकिन उसे सच जानना था। उसे यह समझना था कि माफिया कैसे काम करता है। वह रामू के साथ नदी के पास पहुँचा। अंधेरा घना था। चाँद की रोशनी भी कम थी। चारों तरफ़ सन्नाटा था। सिर्फ़ दूर से भारी मशीनों की आवाज़ आ रही थी। वे आवाज़ें लगातार गूँज रही थीं। जैसे किसी राक्षस की साँसें हों।

"जेसीबी और पोकलेन चल रही हैं," रामू ने फुसफुसाकर कहा। उसकी आवाज़ में डर था। "वे रात में ही काम करते हैं। सूरज निकलने से पहले ही सब ख़त्म कर देते हैं। कोई उन्हें रोक नहीं सकता।" अर्जुन ने देखा। विशालकाय जेसीबी मशीनें नदी के किनारे रेत खोद रही थीं। वे ज़मीन को चीर रही थीं। पोकलेन उत्खनन कर रही थीं। रेत के पहाड़ बन रहे थे। सैकड़ों ट्रक लाइन में खड़े थे। वे बालू से लदे जा रहे थे। उनकी हेडलाइट्स अंधेरे में चमक रही थीं। यह एक औद्योगिक पैमाने का अपराध था। एक संगठित गिरोह का काम।

अर्जुन को लगा कि उसे हस्तक्षेप करना चाहिए। उसे यह रोकना होगा। वह छिपकर आगे बढ़ा। पेड़ों के पीछे से चलता हुआ, वह खनन स्थल के करीब पहुँचा। वह मिट्टी के टीलों के पीछे छिपता रहा। अचानक, कुछ लोग उसके सामने आ गए। उनके हाथों में लाठियाँ थीं। उनकी आँखों में गुस्सा था। वे माफिया के गुंडे थे। वे आसपास निगरानी रखते थे। उन्होंने अर्जुन को देख लिया था। "तुम कौन हो?" एक गुंडे ने चिल्लाकर पूछा। उसकी आवाज़ कठोर थी। अर्जुन ने अपनी पहचान बताई। "मैं पुलिस से हूँ।" गुंडे हँसे। उनकी हँसी में घमंड था। "यहाँ कोई पुलिस नहीं चलती," एक और गुंडे ने कहा। उसकी आवाज़ में अहंकार था। "यहाँ सिर्फ़ रेत माफिया का राज चलता है। तुम नए हो, शायद नहीं जानते।"

अर्जुन ने बहस नहीं की। उसे पता था कि वह कम संख्या में था। वह निहत्था भी था। गुंडों ने उसे घेर लिया। उनकी आँखों में धमकी थी। वे धीरे-धीरे उसके करीब आ रहे थे। "वापस चले जाओ, साहब," एक गुंडे ने कहा। उसकी आवाज़ में अंतिम चेतावनी थी। "यहाँ ज़्यादा दखल देने की कोशिश मत करना। वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा। तुम्हारी ज़िंदगी मुश्किल हो जाएगी।" अर्जुन ने देखा कि वे सब हथियारबंद थे। उनके पास तलवारें और देशी पिस्तौलें थीं। उसने पीछे हटना बेहतर समझा। उसे लगा कि यह उसकी जान के लिए ख़तरा हो सकता है। वह जानता था कि यह सिर्फ़ एक छोटी सी झड़प थी। असली खेल अभी बाकी था। यह सिर्फ़ एक झलक थी।

वहाँ से निकलते हुए, अर्जुन ने एक गुंडे का फोन गिरते हुए देखा। गुंडा जल्दबाजी में था। वह भाग रहा था। उसने फोन को तेज़ी से उठा लिया। गुंडों ने उसे नहीं देखा। वे अपनी जीत का जश्न मना रहे थे। फोन पर कुछ अजीब कोड और लोकेशन थीं। वे कोड संदेशों की तरह लग रहे थे। यह उसे धर्मराज के सिंडिकेट से जोड़ रहा था। धर्मराज का नाम उसने पहले भी सुना था। वह स्थानीय स्तर पर रेत माफिया का सरगना था। उसका नाम पूरे जिले में आतंक का पर्याय था। अर्जुन को पता था कि यह एक महत्वपूर्ण सुराग था। यह एक सीधा संपर्क था। उसने फोन को अपनी जेब में छिपा लिया। उसकी मुट्ठी कस गई।

वापस लौटते हुए, रामू ने अर्जुन को "हफ़्ता" के बारे में बताया। "पुलिस को हफ़्ता देते हैं साहब," रामू ने कहा। उसकी आवाज़ में निराशा थी। "हर हफ़्ते पैसे देते हैं ताकि ट्रक न रुकें। ऊपर से आदेश आते हैं। वे हमें कुछ नहीं कर सकते।" अर्जुन को पता था कि इंस्पेक्टर विक्रम भी इस "हफ़्ता वसूली" में शामिल था। उसके मन में गुस्सा भर गया। यह गुस्सा अब केवल रेत माफिया के लिए नहीं था। यह उन पुलिसवालों के लिए भी था जो इस अपराध में शामिल थे। जो जनता के रक्षक होकर भी भक्षक बन गए थे। वह जानता था कि यह लड़ाई लंबी होगी, लेकिन अब वह पीछे हटने वाला नहीं था। उसने अपनी आँखों में दृढ़ संकल्प को महसूस किया। यह सिर्फ़ एक काम नहीं था। यह एक मिशन था।

वह रात भर जागता रहा। फोन पर मिली जानकारी को समझने की कोशिश करता रहा। कोड्स को तोड़ने की कोशिश करता रहा। उसे लगा कि वह एक बड़े जाल के बीच में खड़ा है। एक ऐसा जाल जो पूरे समाज को अपनी चपेट में ले चुका था। एक ऐसा जाल जो पूरे देश को खोखला कर रहा था। उसे पता था कि उसे इस जाल को तोड़ना होगा। चाहे कुछ भी हो जाए।




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