प्रलय का बीज: दो सम्राट, एक सागर, और एक रहस्य जो उन दोनों से बड़ा था।

 

प्रलय का बीज 

दो सम्राट, एक सागर, और एक रहस्य जो उन दोनों से बड़ा था।

यह ग्यारहवीं शताब्दी के भारत का इतिहास है, जब चोल साम्राज्य का शौर्य अपने चरम पर था। महान सम्राट राजेन्द्र चोल, अपने पिता की विरासत को पार करने और अपने साम्राज्य को अमर बनाने की इच्छा से प्रेरित होकर, अपनी दृष्टि दक्षिण-पूर्व एशिया के सागरों पर केंद्रित करते हैं। जब शक्तिशाली श्रीविजय साम्राज्य मलक्का जलडमरूमध्य के व्यापारिक मार्गों पर अपना आधिपत्य स्थापित करता है, तो राजेन्द्र चोल इसे अपने सम्मान पर एक सीधा प्रहार मानते हैं।

यह संघर्ष उन्हें एक महाकाव्य गाथा की ओर ले जाता है—एक ऐसे प्राचीन रहस्य की खोज में जो पौराणिक कथाओं में छिपा है: एक खोया हुआ यंत्र, जो सागर पर शासन करने की शक्ति प्रदान कर सकता है। अपने पराक्रमी योद्धाओं के साथ, वे एक अभूतपूर्व नौसैनिक युद्ध का आरंभ करते हैं। यह एक्शन और एडवेंचर से भरपूर एक ऐसा अभियान है जो उन्हें विश्वास दिलाता है कि वे अपने साम्राज्य के लिए एक नया भविष्य गढ़ रहे हैं।

किंतु, उनकी विजय का क्षण ही उनके सबसे बड़े भय का आरंभ बन जाता है। उन्हें पता चलता है कि वह यंत्र कोई वरदान नहीं, बल्कि एक श्राप है—एक संतुलनकर्ता जो पृथ्वी को एक आदिम विनाश से बचाए हुए है। यह उनकी विजय नहीं, बल्कि प्रलय का बीज है, जिसे उन्होंने स्वयं ही बो दिया है। अब, एक गहरे दार्शनिक द्वंद्व में फँसे सम्राट को अपने शत्रु के साथ हाथ मिलाना पड़ता है। यह थ्रिलर और रहस्य से भरी यात्रा उन्हें एक ऐसे गुप्त अभियान पर ले जाती है जहाँ उन्हें उस विनाश को रोकना है जिसे उन्होंने स्वयं ही निमंत्रण दिया है। "प्रलय का बीज" एक ऐसा युद्ध उपन्यास है जो प्राचीन भारत की भव्यता और उसके सबसे गहरे, सबसे खतरनाक रहस्यों को एक साथ बुनता है। 

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