देवताओं के अस्त्र
अध्याय १: लौह गरुड़ का ग्रंथ
बर्लिन, १९४२
पुरालेखागार
की खामोशी साधारण नहीं थी। यह एक भारी, दबाव
डालने वाली चुप्पी थी, जो
पत्थर की दीवारों और लोहे की ऊंची अलमारियों से रिसती थी। हवा में पुरानी जिल्दों,
सूखे कागज और ओज़ोन की एक अजीब गंध घुली हुई थी। यहाँ
हर ध्वनि का अपना एक अलग अस्तित्व था। कुर्सी के सरकने की कर्कश आवाज़,
पुराने पन्ने के पलटने की धीमी सरसराहट,
या फिर मोटे बूटों की गूंजती हुई आहट।
उस
विशाल कक्ष के बीचोंबीच, एक
अकेली मेज़ पर तेज़ लैंप की रोशनी पड़ रही थी। उस रोशनी के घेरे में डॉक्टर क्लॉस
रिश्टर झुके हुए थे। उनकी आँखें चमकदार थीं,
लेकिन गहरी नींद की कमी से लाल हो रही थीं। तीन रातें
बीत चुकी थीं। डॉक्टर रिश्टर सोए नहीं थे। काली कॉफ़ी और अपनी आर्य जाति की श्रेष्ठता
का कट्टर विश्वास ही उनका एकमात्र सहारा था।
उनके
सामने ताड़पत्रों की एक प्राचीन पांडुलिपि फैली हुई थी। उसके पन्ने नाज़ुक और पीले
पड़ चुके थे। उन पर लिखी स्याही सदियों के बोझ तले धुंधली हो गई थी। यह कोई साधारण
ग्रंथ नहीं था। यह तिब्बत के किसी गुमनाम मठ के खंडहरों से लूटी गई हज़ारों
कलाकृतियों में से एक था। यह आननेरबे की संपत्ति थी—नाज़ी
जर्मनी की वह गुप्त संस्था, जो
आर्य जाति की खोई हुई अलौकिक शक्तियों और प्राचीन ज्ञान को खोजने के लिए समर्पित
थी। रिश्टर उसके सबसे प्रतिभाशाली और जुनूनी सदस्यों में से एक थे।
वे
एक भाषाविद थे, एक
इतिहासकार थे, और
सबसे बढ़कर, एक
सच्चे विश्वासी थे। वे मानते थे कि हज़ारों वर्ष पूर्व,
एक महान आर्य सभ्यता ने पूरे विश्व पर शासन किया था।
उस सभ्यता के पास ऐसी तकनीक और ऐसे हथियार थे,
जिनकी आज का विज्ञान कल्पना भी नहीं कर सकता। उनका
मानना था कि यह ज्ञान वेदों और पुराणों जैसे भारतीय ग्रंथों में छिपा हुआ है,
जिन्हें समय के साथ गलत समझा गया और भुला दिया गया।
यह
पांडुलिपि अलग थी। इसकी भाषा संस्कृत थी, लेकिन
इसकी शैली और संकेत उन सभी ग्रंथों से भिन्न थे जिनका उन्होंने अब तक अध्ययन किया
था। इसमें पहेलियाँ थीं, रूपक
थे, और ऐसे श्लोक थे जिनके
कई अर्थ निकलते थे। रिश्टर घंटों से एक ही श्लोक पर अटके हुए थे।
सप्तर्षि
यदा मार्गं दर्शयन्ति,
तदा वज्रद्वारं उद्घाटयिष्यति।
यत्र सुप्ताः सन्ति सहस्रसूर्यस्य क्रोधः॥
"जब
सप्तर्षि मार्ग दिखाएंगे, तब
वज्र का द्वार खुलेगा। जहाँ सहस्त्र सूर्यों का क्रोध सोया हुआ है।"
यह
एक सुंदर कविता थी, लेकिन
रिश्टर के लिए यह एक पहेली थी। सप्तर्षि? यह
तो एक तारामंडल का नाम था। वज्र का द्वार?
यह किस चीज़ का प्रतीक हो सकता है?
और सहस्त्र सूर्यों का क्रोध?
यह विचार ही उनके मन में एक सिहरन पैदा कर देता था।
फ्यूरर युद्ध जीतना चाहते थे। उन्हें एक ऐसे हथियार की ज़रूरत थी जो दुश्मनों को
घुटनों पर ला दे। यह श्लोक उसी हथियार का वादा करता प्रतीत होता था।
रिश्टर
ने अपनी कुर्सी पीछे धकेली और उठे। वे कमरे में टहलने लगे। उनकी नज़र दीवार पर लगे
एक विशाल नक्शे पर पड़ी। उस पर लाल धागों से आननेरबे के अभियानों के मार्ग अंकित
थे। एक धागा जर्मनी से शुरू होकर सीधा तिब्बत तक जाता था। उन्हें वह अभियान याद
आया। बर्फीले तूफान, ऑक्सीजन
की कमी, और
स्थानीय लोगों का शत्रुतापूर्ण व्यवहार। लेकिन वे सफल हुए थे। उन्होंने वह मठ ढूंढ
निकाला था, और
यह पांडुलिपि उसी मठ के गर्भ-गृह से मिली थी।
पांडुलिपि
के साथ कुछ और वस्तुएं भी मिली थीं—धातु
की कुछ तश्तरियाँ, जिन
पर अजीब चिह्न खुदे हुए थे। वे चिह्न इस पांडुलिपि के अक्षरों से मेल नहीं खाते
थे। वे कुछ और थे, शायद
किसी अन्य भाषा या कूट-लिपि का हिस्सा। रिश्टर वापस अपनी मेज़ पर आए। उन्होंने एक
दराज़ खोली और उन तश्तरियों की तस्वीरें निकालीं।
वे
तस्वीरों को ध्यान से देखने लगे। चिह्न जटिल थे,
ज्यामितीय और सर्पिल। अचानक,
उनकी नज़र एक विशिष्ट चिह्न पर रुक गई। एक बिंदु जिसके
चारों ओर सात अन्य बिंदु थे, और
वे सभी एक घुमावदार रेखा से जुड़े हुए थे। उन्होंने यह चिह्न पहले भी कहीं देखा
था। लेकिन कहाँ?
उन्होंने
अपना सिर खुजलाया। नींद की कमी उनके विचारों को धुंधला कर रही थी। उन्होंने और
कॉफ़ी डाली और उसे एक ही घूँट में पी गए। कड़वा स्वाद उनके गले में उतरा और उनके
दिमाग में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं और ध्यान
केंद्रित करने की कोशिश की।
सप्तर्षि।
सात तारों का समूह।
वह
चिह्न। एक बिंदु, जिसके
चारों ओर सात बिंदु।
अचानक,
उनके दिमाग में बिजली कौंधी। उन्होंने तेजी से एक और
दराज़ खोली और एक पुरानी डायरी निकाली। यह उनके पहले भारत दौरे की डायरी थी। वे
पन्ने पलटने लगे। उंगलियाँ कांप रही थीं। और फिर,
उन्हें वह मिल गया। एक रेखाचित्र। यह उन्होंने भारत के
एक प्राचीन सूर्य मंदिर की दीवार पर बने एक भित्ति-चित्र को देखकर बनाया था। उस
चित्र के केंद्र में वही चिह्न था। एक बिंदु,
जिसके चारों ओर सात बिंदु। उस मंदिर के पुजारी ने
उन्हें बताया था कि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र है,
जिसे 'सप्तर्षि
मंडल' कहते
हैं।
रिश्टर
की सांसें तेज़ हो गईं। यह एक अविश्वसनीय संयोग था। तिब्बत में मिली धातु की
तश्तरी पर बना चिह्न और भारत के एक सुदूर मंदिर की दीवार पर बना चिह्न—दोनों
एक ही थे। क्या यह संभव था कि पांडुलिपि और वह मंदिर किसी तरह जुड़े हुए हों?
उनका
दिमाग एक कंप्यूटर की तरह काम करने लगा। संबंध जुड़ रहे थे,
पहेली के टुकड़े अपनी जगह पर बैठ रहे थे। पांडुलिपि
केवल एक ग्रंथ नहीं थी। वह एक कुंजी का आधा हिस्सा थी। और दूसरा आधा हिस्सा शायद
उस मंदिर में या उसके आसपास कहीं छिपा था। सप्तर्षि कोई साधारण तारामंडल नहीं थे।
वे एक खगोलीय ताला थे।
उन्होंने
फिर से उस श्लोक को पढ़ा। "जब सप्तर्षि मार्ग दिखाएंगे..."
इसका
मतलब था कि उस द्वार को खोलने के लिए एक विशेष खगोलीय स्थिति की आवश्यकता होगी। एक
ऐसा समय जब आकाश में सप्तर्षि एक विशेष कोण पर हों। यह एक खगोलीय कूट-लिपि थी। एक
ऐसा ताला जिसे केवल वही खोल सकता था जो ब्रह्मांड के चक्र को समझता हो।
और
फिर उन्होंने अंतिम पंक्ति पर ध्यान केंद्रित किया। "सहस्त्र सूर्यों का
क्रोध।"
जर्मनी
के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक एक परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहे थे। वे जानते थे कि
एक परमाणु के विखंडन से कितनी ऊर्जा निकलती है। लेकिन यह?
सहस्त्र सूर्यों का क्रोध?
यह परमाणु ऊर्जा से भी कहीं आगे की बात थी। यह दिव्य
ऊर्जा थी। यह ‘अस्त्र’
थे। प्राचीन भारतीय महाकाव्यों में वर्णित वे
दिव्यास्त्र जो देवताओं के पास हुआ करते थे। ब्रह्मास्त्र,
पाशुपतास्त्र,
नारायणास्त्र।
रिश्टर
को लगा जैसे उनके शरीर में रक्त जम गया हो। अब तक वे इसे केवल एक पौराणिक कथा मानते
थे, कवियों की कल्पना मानते
थे। लेकिन अब, उनके
सामने ठोस सबूत थे। एक पांडुलिपि जो एक खगोलीय ताले की बात करती है,
और एक चिह्न जो हज़ारों किलोमीटर दूर दो अलग-अलग
संस्कृतियों को जोड़ता है।
यह
कोई मिथक नहीं था। यह भूली हुई तकनीक थी। आर्यों की सर्वोच्च तकनीक। एक ऐसी शक्ति
जो पूरी पृथ्वी को एक पल में नष्ट कर सकती थी। एक ऐसी शक्ति जो तृतीय राइख को अजेय
बना सकती थी।
उनके
चेहरे पर एक उन्मादी मुस्कान फैल गई। थकान गायब हो चुकी थी। आँखों में एक नई,
खतरनाक चमक थी। उन्होंने तस्वीरों और अपनी डायरी को
करीने से इकट्ठा किया। हर चीज़ को उसके सही स्थान पर रखा। उन्होंने पांडुलिपि को
सम्मान से उठाया और उसे एक सुरक्षित बक्से में बंद कर दिया।
वे
अपनी कुर्सी से उठे, अपनी
वर्दी को ठीक किया और दृढ़ कदमों से उस विशाल कक्ष के दरवाज़े की ओर बढ़ चले।
पुरालेखागार की खामोशी अब उन्हें दबाव डालने वाली नहीं,
बल्कि संभावनाओं से भरी हुई लग रही थी। हर कदम के साथ
उनका संकल्प और दृढ़ होता जा रहा था।
वे
सीधे राइखफ्यूरर-एस.एस., हाइनरिख
हिमलर के कार्यालय की ओर जा रहे थे। उन्हें पता था कि हिमलर,
जो खुद प्राचीन रहस्यों और गुह्य विज्ञान में गहरी
रुचि रखते थे, उनकी
बात को समझेंगे। और हिमलर उन्हें फ्यूरर तक ले जाएंगे।
डॉक्टर
क्लॉस रिश्टर जानते थे कि उन्होंने कुछ ऐसा खोज निकाला है जो दुनिया का इतिहास
हमेशा के लिए बदल देगा। उन्होंने आर्य जाति का खोया हुआ दिव्यास्त्र ढूंढ निकाला
था। उन्होंने ब्रह्मास्त्र का मार्ग खोज लिया था। अब बस उसे हासिल करना बाकी था।
अध्याय
२: फ्यूरर का आदेश
डॉक्टर
क्लॉस रिश्टर के कदम दृढ़ और सधे हुए थे। वे आननेरबे के पुरालेखागार की खामोशी को
पीछे छोड़, सत्ता
के उस गलियारे में चल रहे थे जहाँ हवा में भी एक अनुशासनबद्ध भय तैरता था। यहाँ की
चुप्पी अलग थी। यह ज्ञान की नहीं, शक्ति
की चुप्पी थी। पॉलिश किए हुए संगमरमर के फर्श पर उनके बूटों की आवाज़ किसी हथौड़े
की चोट की तरह गूँज रही थी। हर मोड़ पर एस.एस. के जवान पत्थर की मूर्तियों की तरह
स्थिर खड़े थे। उनकी नज़रें खाली थीं, लेकिन
उनकी उपस्थिति ही किसी भी विरोध की संभावना को कुचलने के लिए काफी थी।
वे
एक विशाल, नक्काशीदार
दरवाज़े के सामने रुके। दो रक्षकों ने उन्हें बिना कोई भाव प्रकट किए देखा,
फिर एक ने दरवाज़ा खोल दिया। अंदर का कमरा भव्य था,
लेकिन उसमें किसी भी प्रकार की सहजता या आराम का कोई
चिह्न नहीं था। हर चीज़—गहरे
रंग की लकड़ी की दीवारें, भारी
चमड़े की कुर्सियाँ, और
विशाल मेज़—एक
ठंडी, क्रूर
औपचारिकता का प्रदर्शन कर रही थी।
मेज़
के पीछे राइखफ्यूरर-एस.एस. हाइनरिख हिमलर बैठे थे। उनका चेहरा भावशून्य था।
उन्होंने अपने छोटे, गोल
चश्मे के ऊपर से रिश्टर को देखा। उनकी आँखों में कोई गर्मी नहीं थी,
केवल एक विश्लेषणात्मक शीतलता थी। वे एक ऐसे कसाई की
तरह लग रहे थे जो अपने औज़ारों का निरीक्षण कर रहा हो।
"डॉक्टर
रिश्टर," हिमलर
की आवाज़ शांत थी, लेकिन
उसमें एक सर्द धार थी। "मुझे बताया गया कि आपके पास कुछ अति आवश्यक जानकारी
है।"
"जी,
राइखफ्यूरर," रिश्टर
ने झुककर अभिवादन किया और अपनी ब्रीफकेस मेज़ पर रख दी। उन्होंने उसे खोला और कुछ
तस्वीरें तथा अपनी डायरी निकाली। उनका दिल तेज़ी से धड़क रहा था,
लेकिन उन्होंने अपनी आवाज़ को स्थिर रखा। "मैंने
कुछ ऐसा खोज निकाला है जो हमारे युद्ध के प्रयासों की दिशा बदल सकता है। यह हमारी
आर्य विरासत का सबसे गहरा रहस्य है।"
हिमलर
ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने केवल हाथ से इशारा किया,
जिसका अर्थ था,
"जारी रखो।"
रिश्टर
ने अगले बीस मिनट तक अपनी खोज का सार प्रस्तुत किया। उन्होंने तिब्बती पांडुलिपि,
सप्तर्षि मंडल के चिह्न,
और भारत के सूर्य मंदिर के साथ उसके संबंध के बारे में
बताया। उन्होंने उस श्लोक का अनुवाद सुनाया—"सहस्त्र
सूर्यों का क्रोध।"
जैसे-जैसे
रिश्टर बोलते गए, हिमलर
की आँखों की शीतलता में एक अजीब सी चमक पैदा होने लगी। यह उत्साह की चमक नहीं थी;
यह एक वैज्ञानिक की गहरी,
नैदानिक जिज्ञासा थी। जब रिश्टर ने "अस्त्र"
शब्द का उल्लेख किया, तो
हिमलर थोड़ा आगे की ओर झुके।
"दिव्यास्त्र,"
हिमलर ने लगभग फुसफुसाते हुए दोहराया। "तो
प्राचीन कथाएँ सत्य हैं। वे केवल कवियों की कल्पना नहीं,
बल्कि भूली हुई तकनीक का दस्तावेज़ हैं।"
"मेरा
यही मानना है, राइखफ्यूरर,"
रिश्टर ने दृढ़ता से कहा। "यह एक ऐसी शक्ति है जो
प्रकृति के नियमों को मोड़ सकती है। यह सिर्फ एक हथियार नहीं,
यह हमारे देव-तुल्य पूर्वजों का अधिकार है। इसे पुनः
प्राप्त करना हमारा कर्तव्य है।"
हिमलर
कुछ देर चुपचाप बैठे रहे। वे तस्वीरों को देखते रहे,
उनकी पतली उंगलियाँ उन पर धीरे-धीरे फिर रही थीं। वे
इस खोज को युद्ध के नजरिए से नहीं देख रहे थे। उनके लिए,
यह नाज़ी विचारधारा की सबसे बड़ी पुष्टि थी। यह इस बात
का प्रमाण था कि आर्य जाति वास्तव में अन्य सभी से श्रेष्ठ थी,
कि उनके पूर्वज देवता थे। यह उनके गुह्य और नस्लीय
शुद्धता के सिद्धांतों को एक अकाट्य आधार प्रदान करता था।
"यह
जानकारी फ्यूरर तक पहुँचनी चाहिए," हिमलर
ने अंततः निर्णय सुनाया। "तत्काल। मैं स्वयं इस बैठक की व्यवस्था करूँगा।
तैयार हो जाइए, डॉक्टर।
आप सीधे जर्मनी के भाग्य से बात करेंगे।"
एक
घंटे बाद, क्लॉस
रिश्टर एक और भी अधिक भव्य और भयावह कमरे के बाहर खड़े थे। यह बर्लिन में राइख
चांसलरी का हृदय था। यहाँ का माहौल और भी अधिक दमघोंटू था। यहाँ केवल शक्ति ही
नहीं, बल्कि
एक व्यक्ति की सनक और इच्छा पूरे महाद्वीप की नियति लिख रही थी।
दरवाज़ा
खुला। रिश्टर अंदर दाखिल हुए।
कमरा
विशाल था, लेकिन
एक विशाल मेज़ और कुछ कुर्सियों के अलावा लगभग खाली था। दीवार पर लगे एक विशाल
नक्शे पर छोटे-छोटे झंडे लगे हुए थे, जो
जर्मन सेना की वर्तमान स्थिति को दर्शाते थे। खिड़की के पास,
पीठ किए हुए, एडॉल्फ
हिटलर खड़े थे।
वे
धीरे से मुड़े। उनकी आँखें गहरी और धँसी हुई थीं,
लेकिन उनमें एक बेचैन,
ज्वलनशील ऊर्जा थी। उस शांत खड़े व्यक्ति के चारों ओर
एक ऐसा आभामंडल था जो किसी को भी असहज कर सकता था। यह एक ऐसे ज्वालामुखी की उपस्थिति
थी जो किसी भी क्षण फट सकता था।
हिमलर
ने रिश्टर का परिचय कराया। "माइन फ्यूरर,
यह हैं डॉक्टर क्लॉस रिश्टर। इनके पास एक ऐसी खोज है
जो सब कुछ बदल सकती है।"
हिटलर
ने रिश्टर को सिर से पाँव तक देखा। उनकी आँखों में थकान थी,
एक ऐसी थकान जो महीनों से चल रहे युद्ध,
निराशाजनक रिपोर्टों और हर तरफ से बढ़ते दबाव से पैदा
हुई थी। उन्होंने कई चमत्कारी हथियारों के वादे सुने थे।
"बोलिए,
डॉक्टर," हिटलर
की आवाज़ में रूखापन था। "मेरे पास समय कम है।"
रिश्टर
ने एक गहरी सांस ली और बोलना शुरू किया। इस बार,
उनकी प्रस्तुति और भी अधिक संक्षिप्त और प्रभावशाली
थी। उन्होंने सीधे मुद्दे की बात की। उन्होंने "सहस्त्र सूर्यों के
क्रोध" वाली पंक्ति पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे यह शक्ति किसी भी
शहर को एक पल में राख में बदल सकती है, किसी
भी सेना को भाप में उड़ा सकती है। उन्होंने इसे सिर्फ एक हथियार नहीं,
बल्कि "अंतिम विजय" की गारंटी के रूप में
प्रस्तुत किया।
हिटलर
चुपचाप सुनते रहे, उनकी
अभिव्यक्ति में कोई बदलाव नहीं आया। रिश्टर को एक पल के लिए लगा कि उनकी बात का
कोई असर नहीं हो रहा है।
लेकिन
जब रिश्टर ने "ब्रह्मास्त्र" शब्द का उच्चारण किया,
तो हिटलर की आँखों में कुछ बदला। थकान की जगह एक
जानी-पहचानी, कट्टर
चमक ने ले ली। वह एक भूखे भेड़िये की चमक थी जिसने लंबे समय बाद शिकार को देखा हो।
"ब्रह्मास्त्र,"
हिटलर ने शब्द को चखते हुए कहा। वे धीरे-धीरे चलकर
विश्व के नक्शे के पास गए। उनकी उंगलियाँ मॉस्को और लंदन पर फिरीं। "एक ऐसा
हथियार... जो देवताओं का था।"
"हमारे
आर्य पूर्वजों का, माइन
फ्यूरर," रिश्टर
ने साहसपूर्वक कहा।
हिटलर
रिश्टर की ओर मुड़े। अब उनकी आँखों में कोई संदेह नहीं था। युद्ध उनके पक्ष में
नहीं जा रहा था। पूर्वी मोर्चे पर नुकसान बढ़ रहा था। उन्हें एक चमत्कार की ज़रूरत
थी, और रिश्टर उन्हें वही
चमत्कार प्रदान कर रहे थे। एक ऐसा वादा जो इतना भव्य और शक्तिशाली था कि उसे सच
मानना ही एकमात्र विकल्प था।
"यह...
यह कहाँ मिलेगा?" हिटलर
ने पूछा, उनकी
आवाज़ में एक दबा हुआ उत्साह था।
"भारत
में, माइन फ्यूरर। हिमालय की
ऊंचाइयों में," रिश्टर
ने जवाब दिया।
हिटलर
कुछ क्षणों के लिए खामोश हो गए। फिर, उन्होंने
एक निर्णायक सिर हिलाया। "तो तुम भारत जाओगे,
डॉक्टर। तुम्हें जो भी चाहिए,
वह मिलेगा। सर्वश्रेष्ठ उपकरण,
सर्वश्रेष्ठ लोग। तुम इस अस्त्र को जर्मनी के लिए लाओगे।
यह कोई अनुरोध नहीं है। यह फ्यूरर का आदेश है।"
उनकी
आवाज़ शांत थी, लेकिन
उस शांति में एक ऐसी शक्ति थी जो ब्रह्मांड को हिला सकती थी। निर्णय हो चुका था।
"इस
अभियान का एक नाम होना चाहिए," हिमलर
ने कहा। "एक ऐसा नाम जो इसके महत्व को दर्शाए।"
रिश्टर
ने एक पल सोचा। पांडुलिपि के शब्द उनके दिमाग में गूँज रहे थे। "वज्र का
द्वार।" "हम इसे 'ऑपरेशन
वज्र' कह
सकते हैं, माइन
फ्यूरर," उन्होंने
सुझाव दिया। "वज्र, प्राचीन
आर्य देवताओं के राजा का अस्त्र था। यह उपयुक्त होगा।"
"ऑपरेशन
वज्र," हिटलर
ने दोहराया और संतुष्टि में सिर हिलाया। "इसे पूरा करो,
डॉक्टर। असफलता का कोई विकल्प नहीं है।"
आधे
घंटे बाद, रिश्टर
एक दूसरे, अधिक
कार्यात्मक कमरे में थे। उनके सामने तीन व्यक्ति खड़े थे,
जो उनके नए दल का हिस्सा थे। हिटलर के आदेशों का पालन
तुरंत किया गया था।
पहले
व्यक्ति ओबरस्टुरम्बनफ्यूरर (लेफ्टिनेंट कर्नल) एरिक श्मिट थे। वे लंबे और बलवान
थे, उनके चेहरे पर एक पुराना
निशान था और उनकी नीली आँखें बर्फ की तरह ठंडी थीं। वे एस.एस. के एक अनुभवी योद्धा
थे, जिन्होंने अनगिनत गुप्त
अभियानों का नेतृत्व किया था। उनका काम इस दल को किसी भी भौतिक खतरे से बचाना और
लक्ष्य तक पहुँचाना था।
दूसरे
व्यक्ति हाउप्टस्टुरमफ्यूरर (कप्तान) फ्रांज़ वेबर थे। वे श्मिट से कद में छोटे और
शांत स्वभाव के थे। वे एक विध्वंस विशेषज्ञ थे। उनकी दुनिया तनाव और विस्फोट के
बिंदुओं में बंटी हुई थी। उनका काम किसी भी भौतिक बाधा को रास्ते से हटाना था,
चाहे वह चट्टान हो या किले का दरवाज़ा।
तीसरे
और सबसे युवा सदस्य थे उन्टरस्टुरमफ्यूरर (सेकंड लेफ्टिनेंट) हांस गैलो। वे एक
संचार विशेषज्ञ थे। वे लंबी दूरी के कूट-बद्ध संदेशों और नवीनतम जासूसी उपकरणों के
विशेषज्ञ थे। उनका काम यह सुनिश्चित करना था कि ऑपरेशन वज्र का बर्लिन के साथ
संपर्क हमेशा बना रहे, और
किसी को कानोंकान खबर न हो।
क्लॉस
रिश्टर ने अपने नए दल को देखा। एक योद्धा,
एक विध्वंसक, और
एक संदेशवाहक। उनके साथ, वे
दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच सकते थे।
उन्होंने
अपनी ब्रीफकेस खोली और पांडुलिपि की एक तस्वीर मेज़ पर रखी।
"सज्जनों,"
रिश्टर की आवाज़ में एक नया आत्मविश्वास और अधिकार था।
"आपकी विशेषज्ञता आधुनिक युद्ध के लिए है। लेकिन हमारा मिशन समय से भी पुराना
है। हम कोई कारखाना या पुल पर कब्जा करने नहीं जा रहे हैं।"
उन्होंने
तस्वीर पर उंगली रखी।
"हम
अपना दिव्य जन्मसिद्ध अधिकार वापस लेने जा रहे हैं।"
कमरे
में मौजूद चारों व्यक्तियों की आँखों में एक ही जुनून और एक ही खतरनाक संकल्प था।
एक ऐसी यात्रा शुरू होने वाली थी, जो
न केवल द्वितीय विश्व युद्ध का, बल्कि
पूरी मानवता का भविष्य तय कर सकती थी। ऑपरेशन वज्र सक्रिय हो चुका था।
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