वह जो लौटी नहीं: एक गुमशुदगी। एक साज़िश। एक औरत की वापसी

 

वह जो लौटी नहीं

अनन्या शर्मा के पास सब कुछ था—एक प्यार करने वाला मंगेतर, विवान; एक सफल करियर; और एक उज्ज्वल भविष्य। लेकिन एक भयानक कार दुर्घटना की रात, वह हमेशा के लिए गायब हो जाती है।

दो साल बाद, जब विवान अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ चुका है, तब अनन्या लौटती है। लेकिन यह वह पुरानी अनन्या नहीं है। उसे कुछ भी याद नहीं—न अपना नाम, न अपना अतीत, और न ही विवान को दिया हुआ कोई वादा। उसकी दुनिया अब सिर्फ़ एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है—आरव, एक रहस्यमयी फोटोग्राफर जिसने उसे बचाया और एक नई पहचान दी।

जब अनन्या का अतीत दरवाज़े पर दस्तक देता है, तो वह दो दुनियाओं के बीच फंस जाती है—एक तरफ विवान का अधूरा प्रेम, और दूसरी तरफ आरव का सुरक्षात्मक सहारा। लेकिन उसे जल्द ही एहसास होता है कि उसकी गुमशुदगी कोई साधारण हादसा नहीं, बल्कि एक गहरी साज़िश थी। हर राज़ के खुलने के साथ, अनन्या को यह तय करना होगा कि वह किस पर भरोसा करे और अपनी असली पहचान को कैसे पाए। क्या वह उस अतीत को अपनाएगी जो उसे लगभग मार चुका था, या वह एक नया भविष्य बनाएगी जहाँ वह किसी और की नहीं, सिर्फ़ अपनी होगी?

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Sample Chapters: 

अध्याय १: दुर्घटना की रात

आषाढ़ की पहली बौछार के बाद मिट्टी से एक सोंधी गंध उठ रही थी। वह गंध कार के भीतर भी चली आ रही थी, जैसे प्रकृति स्वयं उनके प्रेम की साक्षी बन रही हो। बाहर अँधेरा घिरने लगा था। सड़क के दोनों ओर खड़े विशाल वृक्ष हल्की वर्षा में भीगकर और भी गहरे हरे लग रहे थे। कार के शीशों पर वर्षा की बूँदें ठहरकर फिसल रही थीं, बाहर की दुनिया को एक धुँधले, स्वप्निल चित्र में बदल रही थीं।

अनन्या ने अपना सिर विवान के कंधे पर टिका दिया। उसकी आँखों में एक शांत चमक थी, भविष्य के अनगिनत सपनों से भरी हुई। विवान एक हाथ से स्टीयरिंग व्हील संभाले हुए था और उसका दूसरा हाथ अनन्या के हाथ में था। उनकी उँगलियाँ एक-दूसरे में उलझी हुई थीं, एक खामोश वादा करती हुईं।

"संगीत कितना सुंदर है," अनन्या धीरे से बुदबुदायी। कार में धीमी आवाज में एक पुराना प्रेम गीत बज रहा था।

विवान मुस्कुराया। उसकी मुस्कान में एक सुकून था, जो केवल अनन्या की उपस्थिति में ही उसके चेहरे पर आता था। "तुम्हारी तरह," उसने कहा और अनन्या के हाथ को धीरे से दबाया।

अनन्या ने शरमाकर आँखें झुका लीं। "सब कुछ एक सपने जैसा लग रहा है, विवान। क्या तुम्हें विश्वास होता है कि अगले महीने इसी दिन हम पति-पत्नी होंगे?"

"विश्वास क्यों नहीं होता?" विवान ने आत्मविश्वास से कहा। "मैंने इस दिन के लिए वर्षों तक प्रतीक्षा की है। जब से मैंने तुम्हें पहली बार कॉलेज के पुस्तकालय में देखा था, तभी से मैं जानता था कि तुम ही वह लड़की हो जिसके साथ मैं अपना पूरा जीवन बिताना चाहता हूँ।"

अनन्या को वह दिन याद आ गया। वह अपनी किताबों में खोई हुई थी और विवान दूर से उसे देख रहा था। उनकी पहली नज़र, पहली मुस्कान, पहली बातचीत। सब कुछ उसके मन में किसी चलचित्र की तरह घूम गया। उसने विवान के कंधे पर अपना सिर और गहरे से टिका दिया। "मुझे हमारी शादी के संगीत की सूची बनानी है," उसने कहा, विषय बदलते हुए। "माँ कह रही थीं कि पारंपरिक गीतों को प्राथमिकता देनी चाहिए।"

"तुम्हारी माँ जो कहें, वही सही है," विवान हँसा। "मैं तो बस तुम्हें अपनी दुल्हन के रूप में देखना चाहता हूँ। बाकी सब औपचारिकता है।"

"औपचारिकता नहीं, विवान," अनन्या ने बनावटी गुस्से से कहा। "यह हमारे जीवन का सबसे बड़ा उत्सव है। मैं चाहती हूँ कि सब कुछ उत्तम हो। हमारे मेहमानों की सूची, भोजन, सजावट... और हमारा घर।" घर का नाम लेते ही उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई। "क्या तुमने उन पर्दों के बारे में सोचा जो मैंने चुने थे? हमारे शयनकक्ष के लिए, हल्के नीले रंग के।"

"सोचा है," विवान ने कहा। "और यह भी सोचा है कि उन पर्दों के पीछे से जब सुबह की पहली किरण तुम्हारे चेहरे पर पड़ेगी, तो वह दृश्य कितना अद्भुत होगा।"

उनकी बातों में भविष्य का हर रंग घुला हुआ था। वे अपने छोटे से घर, अपनी आने वाली ज़िंदगी और अपने सपनों के बारे में बात कर रहे थे। हर शब्द में प्रेम था, हर मौन में एक गहरा विश्वास। बाहर की दुनिया से बेखबर, वे अपनी ही बनाई एक सुंदर दुनिया में खोए हुए थे। सड़क पर उनकी कार किसी शांत नदी में तैरती नाव की तरह बढ़ रही थी।

तभी, उस शांत और सुंदर क्षण को एक कठोर ध्वनि ने तोड़ दिया।

विवान का चलभाष बज उठा था।

संगीत की मधुरता के बीच वह इलेक्ट्रॉनिक ध्वनि कानों को चुभ रही थी। विवान ने दूसरे हाथ से फोन उठाया। उसने स्क्रीन पर चमकता हुआ नाम देखा और उसके चेहरे की कोमल रेखाएँ अचानक सख्त हो गईं। एक पल के लिए उसके माथे पर बल पड़ गए।

अनन्या ने यह परिवर्तन तुरंत महसूस कर लिया। विवान के हाथ की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ गई थी। "किसका फोन है?" उसने सहजता से पूछा।

विवान ने कॉल का उत्तर देने से पहले एक गहरी साँस ली। "कुछ नहीं, कार्यालय से है।" उसका स्वर थोड़ा बदल गया था।

"इस समय?" अनन्या को आश्चर्य हुआ।

विवान ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया। वह फोन पर बात करने लगा। उसकी आवाज़ धीमी थी, लगभग फुसफुसाहट जैसी। "हाँ... नहीं, अभी नहीं... मैं बाद में बात करता हूँ।" वह बहुत संक्षिप्त था। उसके वाक्य छोटे और सपाट थे। अनन्या को उसके चेहरे पर एक तनाव दिखाई दे रहा था, जिसे वह छिपाने की कोशिश कर रहा था।

गाड़ी की गति थोड़ी धीमी हो गई थी। कार के अंदर का माहौल अचानक बदल गया था। वह गर्मजोशी, वह हल्कापन, कहीं खो गया था। उसकी जगह एक अनकही खामोशी ने ले ली थी। अनन्या चुप रही। वह विवान को परेशान नहीं करना चाहती थी, लेकिन उसके मन में एक छोटी सी चिंता की लहर उठ खड़ी हुई थी। ऐसा क्या था जो विवान को इतना परेशान कर गया? ऐसा कौन था जो इस तरह रात में उसे फोन कर रहा था?

विवान ने फोन काट दिया और उसे बगल की सीट पर रख दिया। उसने एक गहरी साँस छोड़ी, जैसे किसी बड़े बोझ से मुक्त हुआ हो। उसने फिर से गाड़ी की गति बढ़ा दी।

"सब ठीक है, विवान?" अनन्या ने धीरे से पूछा। उसकी आवाज़ में चिंता थी।

विवान ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराने की कोशिश की। लेकिन उसकी मुस्कान आँखों तक नहीं पहुँच पाई। "हाँ, बिल्कुल ठीक है। बस काम का तनाव। तुम जानती हो, नए प्रोजेक्ट की वजह से...।" उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

अनन्या ने सिर हिला दिया, जैसे उसकी बात समझ गई हो। लेकिन वह जानती थी कि यह सिर्फ काम का तनाव नहीं है। यह कुछ और था। कुछ गहरा, जिसे विवान उससे छिपा रहा था। उसने अपने मन से इन विचारों को झटकने की कोशिश की। शायद वह ज़्यादा सोच रही थी। आज का दिन इतना सुंदर था, वह उसे किसी छोटी सी बात के लिए खराब नहीं करना चाहती थी।

उसने फिर से अपना सिर विवान के कंधे पर रख दिया, लेकिन इस बार वह पहले जैसा सुकून महसूस नहीं कर पा रही थी। एक अनदेखा, अनजाना सा डर उसके मन के किसी कोने में बैठ गया था।

बाहर वर्षा अब और तेज़ हो गई थी। पानी की मोटी-मोटी बूँदें कार की छत पर एक तीव्र संगीत पैदा कर रही थीं। वाइपर तेज़ी से चल रहे थे, फिर भी सामने का दृश्य पूरी तरह साफ नहीं था। सड़क गीली और फिसलन भरी हो गई थी। पेड़ों के पीछे से आती रोशनी सड़क पर अजीब सी परछाइयाँ बना रही थी।

वे एक सुनसान इलाके से गुज़र रहे थे। सड़क के दोनों ओर घना जंगल था। दूर-दूर तक कोई और गाड़ी या इंसान दिखाई नहीं दे रहा था।

"मुझे लगता है हमें थोड़ी देर कहीं रुक जाना चाहिए," अनन्या ने कहा। "वर्षा बहुत तेज़ है।"

"बस कुछ ही देर की बात है, अनन्या," विवान ने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की। "हम जल्द ही मुख्य राजमार्ग पर पहुँच जाएँगे। फिर कोई चिंता की बात नहीं।"

उसने गाड़ी की गति को नियंत्रित रखा। उसका पूरा ध्यान अब सड़क पर था। फोन कॉल के बाद से वह पूरी तरह बदल गया था। वह खामोश था, गंभीर था। अनन्या भी चुप थी। कार में अब सिर्फ़ वर्षा का शोर और वाइपर की टिकटिक की आवाज़ गूँज रही थी।

वे एक तीखे मोड़ पर पहुँचे।

और तभी वह हुआ।

अचानक, मोड़ के दूसरी ओर से दो तेज़ हेडलाइट्स उनकी आँखों में कौंध गईं। वे सीधे उनकी ओर आ रही थीं, बहुत तेज़ी से। वे गलत दिशा में थीं।

सब कुछ एक पल में हुआ, लेकिन अनन्या के लिए समय जैसे रुक गया था।

उसने विवान के चेहरे पर आया भय देखा। उसने उसे स्टीयरिंग व्हील को पूरी ताकत से घुमाते हुए महसूस किया। उसने टायरों की एक कान फाड़ देने वाली चीख सुनी, जो गीली सड़क पर अपनी पकड़ खो रहे थे।

उसकी दुनिया घूम गई।

एक भयानक, धातु के मुड़ने और टूटने की आवाज़ हुई। कार किसी विशाल हाथ से फेंके गए खिलौने की तरह घूम गई। अनन्या का सिर ज़ोर से खिड़की के शीशे से टकराया। उसकी आँखों के सामने हज़ारों सितारे नाच उठे। उसे लगा जैसे वह भारहीन हो गई है, हवा में तैर रही है।

फिर एक और झटका लगा। इस बार और भी ज़ोरदार।

कार रुकी, लेकिन उसके अंदर की दुनिया अब भी घूम रही थी।

चारों ओर काँच बिखरा पड़ा था। सामने का शीशा टूटकर एक मकड़ी के जाले जैसा बन गया था। उस जाले के पार, वर्षा अब भी हो रही थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

अनन्या ने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकली। उसे अपने मुँह में रक्त का नमकीन स्वाद महसूस हो रहा था। उसे दर्द महसूस नहीं हो रहा था, बस एक अजीब सी सुन्नता थी, जैसे उसका शरीर उसका अपना न हो।

उसने धीरे से अपना सिर घुमाया। विवान स्टीयरिंग व्हील पर झुका हुआ था। वह हिल नहीं रहा था। "विवान...?" एक बहुत ही कमज़ोर, टूटी हुई फुसफुसाहट उसके होठों से निकली।

कोई जवाब नहीं आया।

उसने अपना हाथ उठाने की कोशिश की, उसे छूने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ में कोई शक्ति नहीं बची थी।

उसकी नज़र कार की टूटी हुई खिड़की से बाहर गई। वर्षा की बूंदों के बीच, उसे एक धुंधली सी आकृति दिखाई दी। कोई खड़ा था, उनकी कार को देख रहा था। वह आकृति स्पष्ट नहीं थी। वह पुरुष था या स्त्री, यह बताना असंभव था।

अनन्या ने अपनी आँखें खुली रखने की पूरी कोशिश की। वह उस आकृति को देखना चाहती थी। मदद... उसके दिमाग ने कहा। हमें मदद चाहिए।

लेकिन वह आकृति आगे नहीं बढ़ी। वह बस वहीं खड़ी रही, एक काली परछाईं की तरह।

फिर, अँधेरा और गहरा होने लगा। आवाज़ें दूर जाने लगीं। वर्षा का शोर, हवा की सरसराहट, सब कुछ धीमा पड़ने लगा।

अनन्या के दिमाग में आखिरी विचार अपने और विवान के घर का आया। हल्के नीले पर्दों का... और उन पर्दों के पीछे से आती सुबह की पहली किरण का...

उसकी पलकें भारी हो गईं।

और फिर, घना अँधेरा छा गया।


 

अध्याय २: गुमशुदगी

एक तीखी, औषधीय गंध ने सबसे पहले चेतना पर प्रहार किया। उसके बाद मशीनों की एक लयबद्ध, धीमी ध्वनि... बीप... बीप... बीप। और फिर दर्द का एहसास हुआ। एक धीमा, गहरा दर्द जो उसके सिर के पिछले हिस्से से शुरू होकर पूरे शरीर में फैल रहा था।

विवान ने आँखें खोलने की कोशिश की। उसकी पलकें जैसे सीसे की बनी हुई थीं। बहुत प्रयास के बाद, वे धीरे-धीरे खुलीं। छत सफेद थी। बिल्कुल भावहीन, सपाट सफेद। उसने आँखें घुमाईं। कमरा भी सफेद था। उसके एक हाथ में एक पतली नली लगी हुई थी, जो एक बोतल से जुड़ी थी। बोतल एक लोहे के स्टैंड पर टंगी थी।

चिकित्सालय।

यह शब्द उसके दिमाग में कौंधा। और इसके साथ ही, पिछला दृश्य भी कौंधा। एक बिजली की चमक की तरह।

वर्षा। कार। अनन्या का हँसता हुआ चेहरा। फोन कॉल। तनाव। और फिर... तेज़ हेडलाइट्स। कानों को फाड़ देने वाली चीख। अँधेरा।

"अनन्या!"

यह शब्द उसके होठों से एक सूखी, फटी हुई चीख बनकर निकला। वह उठने की कोशिश में छटपटाया, लेकिन उसके शरीर ने उसका साथ नहीं दिया। दर्द की एक तेज़ लहर उसके सिर में उठी और उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया।

"शांत रहिए, मिस्टर मेहरा। कृपया शांत रहिए।" एक शांत, पेशेवर आवाज़ उसके कानों में पड़ी। एक परिचारिका (नर्स) उसके बिस्तर के पास खड़ी थी। उसके चेहरे पर सांत्वना के भाव थे। "आपको चोट लगी है। आपको आराम की ज़रूरत है।"

विवान ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। उसकी आँखें कमरे में किसी और को खोज रही थीं। "अनन्या... मेरी मंगेतर... वह कहाँ है? वह मेरे साथ थी। क्या वह ठीक है?" उसकी आवाज़ में एक हताशा थी, एक भयानक डर था जो उसके दिल को जकड़ रहा था।

परिचारिका ने उसके प्रश्नों का सीधा उत्तर नहीं दिया। उसने कुशलता से विषय बदला। "डॉक्टर साहब आते ही होंगे। आप कृपया लेट जाइए। आपका रक्तचाप बढ़ रहा है।"

"मुझे रक्तचाप की चिंता नहीं है!" विवान लगभग चिल्लाया। "मुझे अनन्या चाहिए। वह किस कमरे में है? मुझे उससे मिलना है।" उसने फिर से उठने की कोशिश की, लेकिन परिचारिका ने धीरे से उसके कंधे को दबाकर उसे वापस लिटा दिया।

"आप समझिए," उसने कहा। "इस हालत में आपका हिलना ठीक नहीं है।"

विवान की आँखों में आँसू भरने लगे। यह बेबसी, यह अनिश्चितता उसे अंदर से खाए जा रही थी। उसे कुछ भी स्पष्ट याद नहीं आ रहा था। दुर्घटना के बाद क्या हुआ? वे चिकित्सालय कैसे पहुँचे? और अनन्या कहाँ है? कोई उसे कुछ बता क्यों नहीं रहा?

तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक प्रौढ़ चिकित्सक अंदर आए। उनके चेहरे पर गंभीरता थी। "कैसा महसूस कर रहे हैं, मिस्टर मेहरा?" उन्होंने पूछा, विवान की आँखों में एक छोटी टॉर्च से देखते हुए।

"मेरी मंगेतर कहाँ है, डॉक्टर?" विवान ने चिकित्सक के प्रश्न को अनसुना करते हुए वही सवाल दोहराया। "उसका नाम अनन्या शर्मा है। वह मेरे साथ ही थी। कृपया मुझे बताइए, वह ठीक तो है?"

चिकित्सक ने एक गहरी साँस ली। वह कुछ पल चुप रहे, जैसे सही शब्दों की तलाश कर रहे हों। यह चुप्पी विवान के लिए किसी भी उत्तर से ज़्यादा भयावह थी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

"देखिए, मिस्टर मेहरा," चिकित्सक ने अंततः कहा। "जब आपातकालीन दल दुर्घटना स्थल पर पहुँचा, तो उन्हें गाड़ी में केवल आप ही मिले।"

विवान को लगा जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो। "क्या? यह... यह असंभव है। वह मेरे ठीक बगल में बैठी थी। मैंने उसे देखा था।"

"हम समझते हैं," चिकित्सक ने शांत स्वर में कहा। "चोट लगने पर कभी-कभी मस्तिष्क भ्रमित हो जाता है। पुलिस को सूचित कर दिया गया है। वे मामले की जाँच कर रहे हैं। फिलहाल, आपके लिए आराम करना सबसे महत्वपूर्ण है।"

"आराम?" विवान हँसा, एक खोखली, दर्द भरी हँसी। "आप मुझसे आराम करने के लिए कह रहे हैं जब मेरी... जब अनन्या का कुछ पता नहीं?"

उसने अपने हाथ से उस नली को निकालने की कोशिश की, लेकिन चिकित्सक ने उसे रोक दिया। "आपकी हालत अभी भी स्थिर नहीं है। आपके सिर में चोट है। अगर आप इसी तरह उत्तेजित होते रहे, तो स्थिति बिगड़ सकती है।"

विवान बिस्तर पर वापस गिर गया। उसके अंदर की सारी शक्ति जैसे समाप्त हो गई थी। उसका दिमाग सुन्न हो गया था। यह कैसे हो सकता है? वह कहाँ जा सकती है? क्या वह गाड़ी से बाहर गिर गई थी? क्या कोई उसे ले गया? या... या फिर सबसे बुरा...। नहीं, वह इस विचार को अपने मन में नहीं आने दे सकता था। वह ज़िंदा है। उसे ज़िंदा होना ही होगा।

चिकित्सक ने परिचारिका को एक संकेत दिया। उसने विवान को एक इंजेक्शन लगाया। विवान ने विरोध नहीं किया। धीरे-धीरे, दवा का असर होने लगा। उसकी चिंता एक भारी, नींद भरी धुंध में बदलने लगी। उसकी आँखें बंद होने लगीं, लेकिन उसका मन अब भी चीख रहा थाअनन्या, अनन्या, अनन्या।


जब विवान को दोबारा होश आया, तो कमरे में सुबह की हल्की रोशनी फैली हुई थी। दर्द अब भी था, लेकिन पहले से कम। उसके बिस्तर के पास एक पुलिस आरक्षक बैठा था।

"मिस्टर मेहरा, मैं आरक्षक सिंह हूँ," उसने विवान को जागते देखकर कहा। "क्या आप बयान देने की स्थिति में हैं?"

विवान ने सिर हिलाया। उसने पुलिस की वर्दी को देखा और उसके अंदर उम्मीद की एक किरण जागी। शायद उन्हें कुछ पता चला हो। "अनन्या... क्या उसका कुछ पता चला?"

आरक्षक सिंह ने सहानुभूति से उसे देखा। "हमारे वरिष्ठ अधिकारी, निरीक्षक वर्मा, आपसे बात करेंगे। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं।"

कुछ ही देर में, निरीक्षक वर्मा कमरे में आए। वह एक अनुभवी और गंभीर व्यक्ति लग रहे थे। उन्होंने विवान से दुर्घटना के बारे में पूछा।

विवान ने आँखें बंद कीं और उस रात को याद करने की कोशिश की। "हम... हम एक पारिवारिक समारोह से लौट रहे थे। वर्षा हो रही थी। अनन्या मेरे साथ थी। हम अपनी शादी के बारे में बात कर रहे थे।" उसकी आवाज़ भर्रा गई।

"आगे क्या हुआ?" निरीक्षक ने पूछा।

"एक फोन आया था... मेरे कार्यालय से।" विवान ने उस तनावपूर्ण क्षण को याद किया। "उसके बाद... मैं थोड़ा परेशान था। फिर एक मोड़ आया। अचानक सामने से तेज़ रोशनी आई। एक गाड़ी... गलत दिशा से आ रही थी।"

"क्या आपको गाड़ी का रंग या नंबर याद है?"

विवान ने सिर हिलाया। "नहीं। सब कुछ इतनी जल्दी हुआ। मुझे बस इतना याद है कि मैंने गाड़ी को बचाने के लिए स्टीयरिंग व्हील घुमाया और फिर... टक्कर हो गई।"

"दुर्घटना के बाद का कुछ याद है आपको?"

विवान ने अपनी स्मृति पर ज़ोर डाला। "धुंध... दर्द... और...।" उसे याद आया। "एक आकृति! गाड़ी के बाहर कोई खड़ा था। एक परछाईं जैसी। अनन्या ने उसे देखा था... या शायद मैंने।"

निरीक्षक वर्मा ने अपनी नोटबुक में कुछ लिखा। "आपको लगता है कि वहाँ कोई और भी मौजूद था?"

"मैं निश्चित नहीं हूँ, निरीक्षक। मेरे सिर में चोट लगी थी। हो सकता है यह मेरा भ्रम हो।" विवान ने हताशा से कहा। "लेकिन अनन्या कहाँ है? अगर वह गाड़ी में नहीं मिली, तो वह कहाँ गई? खाई में? जंगल में?"

"हमारी टीम खोज कर रही है," निरीक्षक ने उसे आश्वासन दिया। "जैसे ही हमें कुछ पता चलेगा, हम आपको सूचित करेंगे।"

निरीक्षक के जाने के बाद, विवान अकेला रह गया। उसके मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे। हर सवाल दूसरे से ज़्यादा भयानक था। तभी उसके कानों में एक परिचित, भयभीत आवाज़ पड़ी।

"विवान बेटा!"

अनन्या के पिता, श्री अविनाश शर्मा, और उनकी पत्नी, श्रीमती कामाक्षी शर्मा, कमरे में दाखिल हुए। उनकी आँखें सूजी हुई थीं और चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। कामाक्षी जी ने विवान को देखते ही रोना शुरू कर दिया।

"कहाँ है हमारी बेटी, विवान?" अविनाश जी की आवाज़ में गुस्सा और डर दोनों था। "तुम उसके साथ थे। तुम्हारी ज़िम्मेदारी थी।"

"अंकल, मुझे..." विवान कुछ कह पाता, इससे पहले ही अविनाश जी ने उसे टोक दिया।

"कुछ मत कहो! तुम गाड़ी चला रहे थे। अगर मेरी बेटी को कुछ हुआ, तो मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगा।"

विवान चुपचाप उनके आरोप सुनता रहा। वह क्या कहता? वे सही तो थे। अनन्या की सुरक्षा उसकी ज़िम्मेदारी थी। और वह असफल रहा था। अपराध बोध का एक भारी पत्थर उसके सीने पर बैठ गया।

डॉक्टरों ने उसे अस्पताल में रहने की सलाह दी, लेकिन विवान नहीं माना। वह अपनी चोटों की परवाह किए बिना, कपड़े बदलकर अस्पताल से निकल गया। अविनाश जी और कामाक्षी जी भी उसके साथ थे। वे सब एक ही जगह जा रहे थेपुलिस स्टेशन। वे जानना चाहते थे कि अब तक की जाँच में क्या प्रगति हुई है।

पुलिस स्टेशन का माहौल निराशाजनक था। हर कोई अपने काम में व्यस्त था, किसी को उनकी पीड़ा की परवाह नहीं थी। निरीक्षक वर्मा ने उन्हें बताया कि खोज दल अभी भी दुर्घटना स्थल पर है, लेकिन अब तक कोई सुराग नहीं मिला है।

"कोई सुराग नहीं मिला? इसका क्या मतलब है?" अविनाश जी चिल्लाए। "वह कोई हवा में तो गायब नहीं हो गई!"

विवान अब और बर्दाश्त नहीं कर सका। "मैं खुद वहाँ जा रहा हूँ," उसने कहा और स्टेशन से बाहर निकल गया। उसे उस जगह को अपनी आँखों से देखना था। उसे अनन्या को खोजना था।


जब वे दुर्घटना स्थल पर पहुँचे, तो सुबह की रोशनी में वह जगह और भी भयावह लग रही थी। सड़क पर काँच के टुकड़े बिखरे हुए थे। पुलिस ने उस जगह को एक पीली पट्टी से घेर दिया था। उनकी कार, जो अब सिर्फ़ धातु का एक मुड़ा-तुड़ा ढेर थी, एक क्रेन द्वारा उठाई जा रही थी।

विवान ने उस कार को देखा और उसका दिल काँप गया। इसी कार में कुछ घंटे पहले अनन्या उसके साथ हँस रही थी, सपने बुन रही थी।

पुलिस और कुछ स्वयंसेवक पास की खाई और जंगल में खोज कर रहे थे। रात की वर्षा ने ज़मीन को दलदली बना दिया था। हर कदम पर पैर कीचड़ में धँस रहे थे। विवान भी अपनी चोटों की परवाह किए बिना, खोज दल में शामिल हो गया। वह पागलों की तरह हर झाड़ी, हर पत्थर के पीछे अनन्या का नाम पुकार रहा था।

"अनन्या! अनन्या, तुम कहाँ हो?"

उसकी आवाज़ जंगल की खामोशी में खो जाती थी। कोई जवाब नहीं आता था।

अविनाश जी भी उसके साथ थे। उनका गुस्सा अब एक गहरी, खामोश पीड़ा में बदल गया था। वे दोनों एक-दूसरे से कुछ नहीं कह रहे थे, लेकिन उनका लक्ष्य एक ही था।

घंटों बीत गए। सूरज सिर पर आ गया था। उनकी उम्मीदें धीरे-धीरे टूट रही थीं। हर बार जब कोई पत्ता खड़कता, वे उम्मीद से उस ओर देखते, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगती।

विवान एक घनी झाड़ी के पास रुका। उसकी नज़र कीचड़ में चमकती हुई किसी छोटी सी चीज़ पर पड़ी। उसने झुककर उसे उठाया। वह मिट्टी से सनी हुई थी। उसने अपनी कांपती उँगलियों से उसे साफ किया।

वह एक झुमका था।

चाँदी का एक छोटा सा झुमका, जिसमें एक नीला पत्थर जड़ा हुआ था।

यह अनन्या का था। विवान ने खुद उसे यह उसके पिछले जन्मदिन पर दिया था। यह इस बात का निर्विवाद प्रमाण था कि अनन्या यहीं थी। इसी जगह पर।

उसने मुट्ठी में उस झुमके को भींच लिया। ठंडी धातु उसकी हथेली में चुभ रही थी। एक पल के लिए उसे लगा कि वह बेहोश हो जाएगा।

उसने अविनाश जी को आवाज़ दी। "अंकल... यह देखिए।"

अविनाश जी दौड़कर उसके पास आए। उन्होंने विवान के हाथ में वह झुमका देखा और उनकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। उनकी बची-खुची हिम्मत भी जवाब दे गई।

वह विवान के कॉलर को पकड़कर उसे झिंझोड़ने लगे। "कहाँ है वो, विवान? बताओ मुझे! तुमने क्या किया मेरी बेटी के साथ?" उनका गला रुँध गया था। "तुम गाड़ी चला रहे थे। यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है! तुम उसे वापस लाओ! किसी भी कीमत पर मेरी बेटी को वापस लाओ!"

कामाक्षी जी भी वहाँ पहुँच गईं। वह अपने पति को संभाल रही थीं और खुद भी रो रही थीं। "तुमने हमारी दुनिया उजाड़ दी, विवान। हमारा सब कुछ छीन लिया।"

विवान चुपचाप खड़ा रहा। वह न तो अपना बचाव कर सका, न ही उन्हें कोई सांत्वना दे सका। उनके हर आरोप में सच्चाई थी। उनके हर आँसू का कारण वही था। वह उस कीचड़ भरी ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया। उसके हाथ में वह अकेला झुमका था, और उसकी आँखों में एक अंतहीन रेगिस्तान।

अनन्या गुमशुदा थी।

और इस कठोर सच के बोझ तले, विवान की अपनी दुनिया भी हमेशा के लिए बिखर चुकी थी।


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