पूर्वांचल फ़ाइल्स: एक शिकारी का अंत: सबसे बड़ा शिकारी, जब ख़ुद शिकार बन गया।

 


पूर्वांचल फ़ाइल्स

१९९० के दशक के भारत में, जब पूर्वांचल की धरती गैंगवार और राजनीतिक भ्रष्टाचार से लाल थी, तब एक गुमनाम गाँव के अखाड़े से एक नौजवान ने क़दम बाहर रखा। उसका नाम विक्रम सिंह था, पर जल्द ही अपराध की दुनिया उसे एक नए नाम से जानने वाली थी—वीर। एक छोटी सी लड़ाई में हुई एक हत्या उसे एक ऐसा भगोड़ा बना देती है, जहाँ से वापसी का कोई रास्ता नहीं था।

मगध प्रदेश के माफ़िया सरगना सूर्यकांत पाठक के संरक्षण में, वीर अपराध के वो तरीक़े सीखता है जो उसे एक साधारण गुंडे से एक पेशेवर हत्यारा बना देते हैं। एके-४७ जैसे घातक हथियार से लैस होकर, और भ्रष्ट मंत्री अविनाश चौबे का राजनीतिक संरक्षण पाकर, वह उत्तर प्रदेश में आतंक का एक ऐसा साम्राज्य स्थापित करता है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। वह अपने प्रतिद्वंद्वियों को दिन-दहाड़े गोलियों से भून देता है और अपनी मनोवैज्ञानिक "संदेश" प्रणाली से शहर के अमीरों की रातों की नींद हराम कर देता है।

जब वीर का आतंक प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचता है, तो राज्य सरकार एक अभूतपूर्व क़दम उठाती है। आईपीएस आनंद माथुर और ऋषि वर्मा के नेतृत्व में विशेष कार्य बल (वीकेबी) का गठन होता है, जिसका सिर्फ़ एक मक़सद है—वीर को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ना।

"पूर्वांचल फ़ाइल्स: एक शिकारी का अंत" एक ऐसी अविश्वसनीय और तेज़ गति की कहानी है, जो एक चालाक शिकारी और एक उससे भी ज़्यादा चालाक शिकार के बीच की दिमाग़ी जंग को दर्शाती है। यह दिखाती है कि कैसे एक अकेला आदमी अपनी हिम्मत और क्रूरता के दम पर पूरी व्यवस्था को चुनौती दे सकता है। सच्ची घटनाओं से प्रेरित यह उपन्यास आपको उस दौर के पूर्वांचल की ख़तरनाक गलियों में ले जाएगा, जहाँ डर ही एकमात्र क़ानून था और जहाँ हर साँस के लिए एक क़ीमत चुकानी पड़ती थी।

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